Top Guidelines Of सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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दानवीर कर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र कर्ण, सूतपुत्र कर्ण

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कोणार्क सूर्य मंदिर कहां स्थित है? इसे किसने बनवाया था?

परशुराम ने उन्हें बहुत गहन शिक्षा दी जिसके बाद वे कर्ण को अपने बराबर का ज्ञानी धनोदर बोलने लगे. एक दिन जब कर्ण की शिक्षा समाप्त होने वाली थी तब उसने अपने गुरु से आग्रह किया कि वो उसकी गोद में लेट कर आराम कर लें, तभी एक बिच्छु आकर कर्ण को पैर में काटने लगा, कर्ण हिला नहीं क्यूनी उसे लगा अगर वो हिलेगा तो उसके गुरु उठ जायेंगे.

अब कर्ण का आखिरी कहानी। वर्षा इनकी पाँचवी पत्नी है जो कि राजा रजयसेन की पुत्री और कर्पजोत साम्राज्य की राजकुमारी थी। कर्ण और वर्षा का विवाह एक प्रेम कहानी के रूप में बताया गया है। वर्षा की ऐसी कहानी जो कि दुर्योधन, मयुरी और भानुमती की प्रेम कहानी को भी जोड़ सकती हैं। रत्नमला कर्ण और उनकी महारानी वर्षा की पुत्री है। वह दुर्योधन की पुत्री, लक्ष्मणा की सखी है। कर्ण ने वर्षा की बहन, गीता से भी विवाह की थी। राजकुमार श्रुतसेन कर्ण और महारानी गीता का पुत्र है। अर्जुन से तुलना[संपादित करें]

जिन्होंने पालन पोषण किया – सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा

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अंगराज कर्ण के करनाल में और मेरठ में मंदिर हैं। उनके नाम से करनाल शहर में कर्ण लेक है उनकी दानवीरता का सबसे बड़ा प्रमाण है और इसे कोई नही मिटा सकता। जब तक संसार और यह पृथ्वी रहेगी तब तक उनका नाम अमर रहेगा कुन्ती और कर्ण[संपादित करें]

कर्ण, दुर्योधन का एक निष्ठावान और सच्चा मित्र था।

महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए वरदान की कथा और कर्ण का जन्म :

और मुझे इसका बदला लेना है

विध्यार्थी श्लोक मन्त्र - काक चेष्टा भावार्थः सहित

कुंती राज्य की राजकुमारी का नाम था – कुंती. राजकुमारी कुंती बहुत ही शांत, सरल और विनम्र स्वभाव की थी. अपने राज्य में महर्षि दुर्वासा की आगमन का समाचार सुनकर राजकुमारी कुंती read more ने उनके स्वागत, सत्कार और सेवा का निश्चय किया और मन, वचन और कर्म से इस कार्य में जुट गयी. महर्षि दुर्वासा ने लम्बा समय कुंती राज्य में व्यतीत किया और जितने समय तक वे वहाँ रहें, राजकुमारी कुंती उनकी सेवा में हमेशा प्रस्तुत रही.

अर्जुन एक बार कृष्ण से पूछते है कि आप क्यूँ युधिस्थर को धर्मराज और कर्ण को दानवीर कहते हो, तब इस बात का जबाब देने के लिए कृष्ण अर्जुन के साथ ब्राह्मण रूप में दोनों के पास जाते है. पहले वे युधिस्थर के पास जाते है और जलाने के लिए सुखी चन्दन की लकड़ी मांगते है. उस समय बहुत बारिश हो रही होती है, युधिस्थर अपने आस पास सब जगह बहुत ढूढ़ता है लेकिन उसे कोई भी सुखी लकड़ी नहीं मिलती जिसके बाद वो उन दोनों से माफ़ी मांगकर उन्हें खाली हाथ विदा करता है.

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