Not known Details About सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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एक दिन जब कर्ण की शिक्षा समाप्त होने वाली थी तब उसने अपने गुरु से आग्रह किया कि वो उसकी गोद में लेट कर आराम कर लें, तभी एक बिच्छु आकर कर्ण को पैर में काटने लगा, कर्ण हिला नहीं क्यूनी उसे लगा अगर वो हिलेगा तो उसके गुरु उठ जायेंगे. जब परशुराम उठे तब उन्होंने देखा कि कर्ण का पैर खून से लथपथ था, तब उन्होंने उसे बोला कि इतना दर्द एक ब्राह्मण कभी नहीं सह सकता तुम निश्चय ही एक क्षत्रीय हो. कर्ण अपनी सच्चाई खुद भी नहीं जानता था, लेकिन परशुराम उससे बहुत नाराज हुए और गुस्से में आकर उन्होंने श्राप दे दिया कि जब भी उसे उनके द्वारा दिए गए ज्ञान की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तभी वो सब भूल जायेगा.

यदुवंशी राजा शूरसेन की पोषित कन्या कुन्ती जब सयानी हुई तो पिता ने उसे घर आये हुये महात्माओं के सेवा में लगा दिया। पिता के अतिथिगृह में जितने भी साधु-महात्मा, ऋषि-मुनि आदि आते, कुन्ती उनकी सेवा मन लगा कर किया करती थी। एक बार वहाँ दुर्वासा ऋषि आ पहुँचे। कुन्ती ने उनकी भी मन लगा कर सेवा की। कुन्ती की सेवा से प्रसन्न हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, 'पुत्री!

इसी कारण कर्ण को राधेय कहा जाता है. महाबलि कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता का निर्वहन अपने प्राणों की अंतिम श्वास तक किया.

कुंती के कुवारा अवस्था के दरमियान दुर्वासा ऋषि उनके यहाँ आए थे, और वे अपनी दिव्यदृष्टी से देख लिए थे की पांडू और कुंती के कभी संतान नहीं हो सकते है

कुंती राज्य की राजकुमारी का नाम था – कुंती. राजकुमारी कुंती बहुत ही शांत, सरल और विनम्र स्वभाव की थी. अपने राज्य में महर्षि दुर्वासा की आगमन का समाचार सुनकर राजकुमारी कुंती ने उनके स्वागत, सत्कार और सेवा का निश्चय किया और मन, वचन read more और कर्म से इस कार्य में जुट गयी. महर्षि दुर्वासा ने लम्बा समय कुंती राज्य में व्यतीत किया और जितने समय तक वे वहाँ रहें, राजकुमारी कुंती उनकी सेवा में हमेशा प्रस्तुत रही.

तेगन ,पांचाल विदेह ,सुहास ,अंग ,गंग ,निषाद,कलिंग ,वत्स ,अशमठ जैसे राज्यों पर विजय प्राप्त की ।

महाभारत में जितना मुख्य किरदार अर्जुन का था, उतना ही कर्ण का भी था. कर्ण को श्राप के चलते अपने पुरे जीवन काल में कष्ट उठाने पड़े और उन्हें वो हक वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे.

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श्रीकृष्ण दान अस्वीकार करते हुए बोले- राजन इन दांतों पर रक्त लगा है और आपने इसे अपने मुह से निकाला है, इसलिए यह स्वर्ण झूठा है. हम स्वीकार नही करेगे.

कर्ण को उसके गुरु परशुराम और पृथ्वी माता से श्राप मिला था। इसके अतिरिक्त भी कर्ण को बहुत से श्राप मिले थे।

महाभारत के युद्ध के समय जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था तो उस वक्त अश्वसेना नामक नाग कर्ण के बाण पर आ कर बैठ गया और कर्ण से बोला की तुम बाण चलाओ और मै बाण पर लिपटा रहूँगा और अर्जुन को काट लूँगा क्युकी अर्जुन द्वारा खंडव-परस्त के जंगलो में आग लगाने के कारण मेरी माँ उसमे जल गई थी

कर्ण के दो दांत सोने के थे, उन्होंने निकट पड़े पत्थर से उन्हें तोडा और बोले ब्राह्मण देव मैंने सर्वदा सोने का ही दान किया है. इसलिए आप इन स्वर्ण युक्त दांतों को स्वीकार करे.

अंगराज कर्ण का विवाह शांतिपर्व के उपन्यास में उसका उल्लेख है। कर्ण ने सात तक आठ विवाह किए थे। उनकी प्रथम पत्नी है - पद्मावती। पद्मावती कर्ण की प्रथम पत्नी व कही उपन्यास में वृषकेतु की माता मानी जाती है। कर्ण ने दूसरी विवाह भी की थी। उनकी दूसरी पत्नी का नाम सुप्रिया है। वेदव्यास के महाभारत के अनुसार, सुप्रिया वृषकेतु की माँ मानी जाती है। उरूवी एक ऐसी पात्र है जो अंगराज से गंधर्व विवाह किया था। वह एक महाभारत की पात्र नही है पर एक कवयित्री ने उस पात्र को "उरूवी" नाम का उल्लेख दिया था। कर्ण और उरूवी का पुत्र का था धनुजय।

कर्ण दानवीर के नाम से भी प्रसिद्ध थे, कहा जाता है की आज तक कोई भी इनके पास से खाली हाथ वापस नहीं लौटा जिसका फ़ायदा उठा कर इंद्र ने भिक्षुक बन कर उसके कवच और कुंडल भिक्षा में मांग लिए जिससे महाभारत के युद्ध में अर्जुन की विजय हुई थी

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